पाकिस्तान के खिलाफ सख्त कदम उठाते हुए भारत सरकार ने बुधवार को दशकों पुराने जल-बंटवारे समझौते, सिंधु जल संधि को निलंबित कर दिया।
साल 1960 में हुए सिंधु जल समझौता को तत्काल प्रभाव से स्थगित रखने का निर्णय लिया गया है। पाकिस्तान के लिए लाइफ लाइन कही जाने वाली सिंधु और सहायक नदियों के पानी पर हिंदुस्तान का नियंत्रण होते ही वहां के लोग पानी के लिए तरस जाएंगे। सिंधु और सहायक नदियां चार देशों से गुजरती हैं। इतना ही नहीं 21 करोड़ से ज्यादा जनसंख्या की जल जरूरतों की पूर्ति इन्हीं नदियों पर निर्भर करती है।
सिंधु जल संधि (Indus Waters Treaty) 1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच विश्व बैंक की मध्यस्थता से हस्ताक्षरित एक जल-बंटवारा समझौता है। यह संधि सिंधु नदी प्रणाली की छह नदियों सिंधु, झेलम, चेनाब, रावी, ब्यास और सतलुज के पानी के उपयोग को नियंत्रित करती है।
भारत ने इससे पहले कभी सिंधु जल समझौते को नहीं रोका था। यह पहली बार है जब भारत ने इस पर सख्त निर्णय लिया है। यह फैसला दर्शाता है कि अब भारत पाकिस्तान की आतंकवाद को समर्थन देने वाली नीति को बर्दाश्त नहीं करेगा। भारत सिंधु समझौते के तहत दिए गए अधिकारों का पूरा उपयोग कर सकता है। भारत यहां सीमित बांध बना सकता है, जिससे भारत में जल की उपलब्धता काफी बढ़ जाएगी। बिजली परियोजनाएं शुरू कर सकता है, जिससे बिजली उत्पादन को बड़ा बूस्ट मिलेगा। भारत सिंचाई योजनाओं का विस्तार कर सकता है, जिससे कृषि उत्पादन को बढ़ावा मिलेगा। एक्सपर्ट का मानना है कि अब भारत इस भूल को ठीक करे और समझौते में जरूरी संशोधन कर सिंधु और उसके सहायक नदियों का पानी उचित मात्रा में आवंटित करे। पाकिस्तान रुक-रुक कर भारत पर आतंकी हमला करता रहता है। नेहरू ने यह समझौता दोनों देशों के बीच संबंधों को बढ़ावा देने की उम्मीद से की थी। लेकिन पाकिस्तान हर बार इस उम्मीद पर पानी फेरता रहा है। ऐसे में भारत सरकार का सिंधु जल समझौता स्थगित करने का फैसला पाकिस्तान पर करारा और गहरी चोट देने वाला साबित होने वाला है।
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