नई दिल्ली – बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने एक बार फिर से नेतृत्व में बड़ा बदलाव करते हुए आकाश आनंद को चीफ नेशनल कोऑर्डिनेटर नियुक्त किया है। पार्टी सुप्रीमो मायावती के इस फैसले से यह साफ हो गया है कि बसपा अब युवा नेतृत्व को आगे लाने की दिशा में मजबूती से कदम बढ़ा रही है।
🔹 मायावती का बड़ा फैसला: नई शुरुआत
मायावती ने 19 मई 2025 को दिल्ली में आयोजित पार्टी बैठक में अपने भतीजे आकाश आनंद को फिर से एक प्रमुख भूमिका में बहाल किया। उन्हें देशभर में संगठन को मजबूत करने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। यह पद ‘चीफ नेशनल कोऑर्डिनेटर’ के नाम से नया बनाया गया है।
🔹 भड़काऊ भाषण से निष्कासन तक का सफर
अप्रैल 2024 में लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान सीतापुर में दिए गए एक विवादित भाषण के चलते आकाश आनंद से पार्टी ने सभी पद वापस ले लिए थे। उन्होंने भाजपा नेताओं की तुलना आतंकवादियों से की थी, जिसके बाद पार्टी की छवि को नुकसान पहुँचा। इसके बाद, 2 मार्च 2025 को मायावती ने उन्हें पार्टी से निष्कासित कर दिया था।
🔹 माफी और दोबारा वापसी
13 मार्च 2025 को आकाश आनंद ने सार्वजनिक रूप से माफी माँगी, जिसके बाद मायावती ने उनका निष्कासन तो रद्द कर दिया लेकिन तत्काल उन्हें कोई पद नहीं दिया गया। इसके बाद पार्टी के अंदर कई तरह की चर्चाएं और अटकलें शुरू हो गई थीं।
🔹 समर्थकों की मांग और नेतृत्व का समर्थन
पार्टी कार्यकर्ताओं और आकाश आनंद के समर्थकों ने लगातार मांग की कि उन्हें पुनः नेतृत्व की भूमिका सौंपी जाए। अंततः 19 मई 2025 को मायावती ने उन्हें ‘चीफ नेशनल कोऑर्डिनेटर’ बनाकर पार्टी में दोबारा प्रभावशाली भूमिका दी।
🔹 आनंद कुमार की भूमिका भी रही अहम
इस पूरे घटनाक्रम में आकाश के पिता आनंद कुमार की भूमिका भी महत्वपूर्ण रही। उन्होंने स्वयं किसी पद को लेने से इनकार किया और आकाश के लिए रास्ता साफ किया। साथ ही, पार्टी में उठ रही असंतुष्टि को भी शांत करने में उन्होंने योगदान दिया।
🔹 क्या 2027 चुनावों के लिए गेमचेंजर होंगे आकाश?
बसपा अब एक बार फिर से संगठन को सक्रिय करने और अगली पीढ़ी को नेतृत्व में लाने की रणनीति पर काम कर रही है। आकाश आनंद को दी गई यह जिम्मेदारी केवल एक पद नहीं बल्कि भविष्य की दिशा का संकेत है।
📣 निष्कर्ष: बसपा में नई ऊर्जा
आकाश आनंद की वापसी बसपा के लिए नई ऊर्जा का संचार है। अब यह देखना होगा कि वे संगठन को ज़मीनी स्तर पर कितनी मजबूती से सक्रिय करते हैं और आगामी विधानसभा व लोकसभा चुनावों में यह बदलाव कितना असरदार साबित होता है।
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